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नारकी. अने समुर्छिम पंचेंद्रिीरूप नवा नवा पुद्गलना वेष पेहेरी नवां नवां नाम धरावी आत्मभान भूल्यो छतो चार गतिरुप संसार नगरना चोराशीलाख चउटामा अनादिकाळथी अनेक दुःख सहन करतो भमतो फरे छे. ए रीते आ जीव कर्मरूप पुद्गलमां परिणम्यो छतो भटक्या करे छे. परंतु निश्रयनये जीव सदा शाश्वतो छे, अने सत्ताए सिद्धं समान छे व्यवहारनये जीव अने पुद्गल ए वे द्रव्य परिणामी छे. तथा पुद्गलास्तिकाय द्रव्यना पण निश्चय नये परमाणुआ सर्व पोताने स्वभावे रह्या छे, अने व्यवहार नये पुद्गल परमाणुआ मली खंध थाय छे, पण जो निश्चयनये संध थातो होत तो कोइ
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