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(२१५)
धर्मरूप जेनो आत्मा परिणम्यो छे अने तेनो शुद्धानुभव करीने आत्मानी शुद्ध ज्ञानादि परिणतिने सेवे छे तेने निश्चय सम्यप्रगटे छे एवो वास्तविक अनुभवार्थ ग्रहतां सापेक्षत्व व्याख्याए निश्चय सम्यक्त्व ग्रहाय छे.
सम्यक्त्व.
संख्यात वर्षायुष्क संज्ञि पंचेन्द्रिय ति यचो तथा स्त्रीओ तथा भवनपति व्यंतर ज्योतिषाने क्षायिक समकित नथी. तेओने ते भवमां क्षायिक सम्यक्त्व उप्तन्न थतुं नथी. संख्याता वर्षायुष्कवाळा मनुष्यने क्षायिक सम्यक्त्वनो आरंभ थाय छे माटे संख्याता वर्षायुष्कवाळा संज्ञिपंचे
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