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(२०३) नयनिक्षेप प्रमाणोवडे पदार्थोना ज्ञान पूर्वक भावथी जिनेश्वरतत्वोनी जे श्रद्धा थाय छे तेने भावसम्यक्त्व कहे छे.
श्री हरिभद्रसूरि नीचे प्रमाणे कहे छे. जीवाइ नव पयत्थे, जो जाणइ तस्स होइ सम्मत्तं, भावेण सद्दहंते अयाणमाणेवि सम्मत्तं ॥ १ ॥ अरिहं देवोगुरुणो, सुसाहुणो जिणमयं पमाणंच इच्चाइ सुहो भावो, सम्मत्तं बिंति जगगुरुणो । जिणवयणमेव तत्तं इत्य रुई होइ दव्वसम्मत्तं । जद् भावणाण सद्धा, परिसुद्धं भावसम्मत्तं ॥ जिनवचन तेज तत्व छे. सच्चमेव
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