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अनंतज्ञान, अनंत दर्शन, अनन्त चारित्र अने अनंत वीर्यनो भोक्ता आत्मा अरुपी असंख्य प्रदेशमयी छे. तेनुं जे ज्ञान तेने निश्चय ज्ञान कहे छे.
आत्मा वस्तु अनादि अनंत छे, तेने अनादिथी कर्मनो संयोग थयो छे, तेथी दुःखी थाय छे. भवी साथे कर्मनो संबंध अनादि सांत भांगे छे. अभवी साथे कर्मनो संबंध अनादि अनंतमे भांगे छे.
कर्मना आठ प्रकार छे - ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र, अने अंतराय एम आठ कर्म छे, तेनी उतर प्रकृति १५८ छे. ते कर्मरूप जड वस्तुनो प्रपंच विचित्र छे. जेम ब्राह्मीरूप जड औ
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