________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१६१)
यांने पुण्य कहे छे, अने आत्मानी साथे लागेलां जे कर्मनां अशुभ दळीयां तेने पाप कहे छे, हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन अने परिग्रह रूप आस्रवथी कर्मनो बंध थाय छे. राची माचीने पांच इंद्रियांना त्रेवीश विषय सेववाथकी आस्रवनो बंध थाय छे. प्रमादना वशथकी तेम मन वचन कायाना दुःप्रणिधानथी तेमज क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, दुगंछा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, अने नपुंसकवेद, ए आदिथी आत्मानी साथे आस्रवनो संबंध थाय छे. जीव अनादि काळधी आस्रवना ग्रहण करवाथी चार गतिमां भम्या करे छे, अने तेथी अनेक प्रकारनां दुःख पामे छे. ए आस्रव महा दुःखदायी छे. आत्मानुं अहितका -
*
www.kobatirth.org
For Private And Personal Use Only