________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( १६० )
अशुचिमय छे, पुरुषनां नव अने स्त्रीनां बार द्वारथी सदा अशुचि नीकळे छे, हाल शरीर पवित्र लागे छे, पण रोग थए छते दुर्गंधी युक्त थइ जाय छे. मांस, रुधिर, मेद अने हाडकां वगेरेथी शरीर बन्युं छे, तेने देखी हे चेतन ! तुंशुं राचे छे. गर्भावासे कीडानी पेठे नवमास मळमां रह्यो, सूर्यनो प्रकाश आवे नहीं, अने उंधे मस्तके रहेतुं एहवां गर्भनां दुःख चेतन शुं तुं विसरी गयो ? अशुचिमय काया देखी मोह पामी शुं राचे छे ? एम विचारखुं ते छठ्ठी अशुचिभावना. ७ आस्रवभावनामिथ्यात्व, अविरति, कषाय, अने योगथकी जीव आस्रवनुं ग्रहण करे छे. शुभाशुभ कर्मनां दळीयां आववानो जे रस्तो तेने आस्रव कहे छे. शुभ दळी
www.kobatirth.org
For Private And Personal Use Only