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(१५०) अने केटलाक सिंहना जेवा होय छे. कोइ माणसे कंइ तेनुं बगाडयुं होय तो ते माणसे मारं बगाडयुं, अरे ए मारो शत्रु छ, अरे ए मारो वैरी छे, एम धारी तेनुं मुंड करवा तत्पर थाय छे, अने द्वेष करे छे, पण विचारतो नथी के जो मारे, शुभकमनो उदय वर्ततो होत तो मारुं शी रीते करवाने समर्थ थात. हाल माग कर्मनो विपाक उदये आव्यो छे, तेथी अन्य मनुष्य निमित्त कारणभूत थयो छे. पण तेमां कंइ तेनो दोष नथी. ए अशुभ कर्म में कयों छे तेनो ए दोष छे. माटे हे चेतन!!! तुं कर्मबंध रहीत था !!! अने कर्मनी जाळमा फसाइश नहीं. जेटलां कर्म कर्या छे, तेटला भोगवां पडशे. तुं बीजा माणस उपर द्वेष शामाटे
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