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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४५ ) न य आहारनिहारा, अइसयरहिआण जंति दिट्ठिपहे । सासो अ कमलगंधो, इअ जम्मा अइसया चउरो । १९५ । न च आहारनिहारा - वतिशयरहितानां यातोदृष्टिपथे । श्वासश्च कमलगन्ध - एते जन्मनोऽतिशयाश्चत्वारः ॥ १९५ ॥ तिरिनरसुराण कोडा - कोडीओ मिंति जोयणमहीए ! सवसभासाणुगया, वाणी भामंडलं पिट्टे || १९६ ॥ तिर्यग्नरसुराणां कोटाकोट्योमान्ति योजनमह्याम् । " सर्वेषां भाषानुगता, वाणी भामण्डलं पृष्ठे ॥ १९६ ॥ रुयवइरईइमारी, डमरदुभिक्खं अवुडिअड्वुट्ठी | जोयणसए सवाए, न हुंति इअ कम्मखयजणिया ॥ १९७ ॥ रुजोवैरे तिमारी - डमरदुर्भिक्षमवृष्टिरतिवृष्टिः । योजनशते सपादे, न भवन्त्येते कर्मक्षयजनिताः ॥ १९७ ॥ पायारतिगमसोगो - सीहासण धम्मचक्कचउरुवा | छच्चत्चयचमरदुंदुहि-रयणझया कणयपउमाई ॥। १९८ ॥ पणवन्नकुसुमबुट्टी, सुगंधजलवुट्टि वाउ अणुकूलो | छ रिउ पण इंदियत्था - णुकूलया दाहिणा सउणा ॥ १९९ ॥ नहरोमाण अबुड्डी, अहो मुहा कंटया य तरुनमणं । सुरकोडिजहणेण वि, जिणंतिए इअ सुरेहिं कया ॥ २००॥ प्राकारत्रिकमशोकः, सिंहासनधर्मचक्रचतूरूपाणि । छत्रत्रयचामरदुन्दुभि-रत्नध्वजकनकपद्मानि ॥ १९८ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008650
Book TitleSaptatishat Sthana Prakaranam Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRuddhisagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages364
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Literature
File Size14 MB
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