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थोउणं भावेणं-समच्चिया होह पंकपरिहीणा, साहिस्संति पसिद्धिं, अवं सुहदाइणी पडिमा ॥१०॥ अवं विहगुणकलियं, पडिमं सरिसंभवाहिदेवस्स, णच्चा जे पूयाई, कुणंति बहुमाण जोगेणं ॥१०१॥ ते इह परत्थ सुहिया, होज्जा पाविज्जकित्तिम विविउलं, नियगुणरमणसमिद्धि-लहंति सिग्धं न संसीइ ॥१०२।। सरणि हिंणदिंदुसमे, उत्तम सोहग्ग पंचमी दियहे, सिरिजिणसासणरसिए, जइणउरी रायणयरम्मिम्मि ॥१८३।। सिरि संभवथवसयगं, गुरुवरसिरिणेमिसूरिसीसेणं पउमेणायरिअणं, विहियं पभणंतु भव्वयणा ॥१०४॥
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