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__ माहाराज साहेबनी पासे आव्यो. अने वैराग्यकारक न्तवनो संभळाव्या. आ वखते रातीना दश वाग्यानो सुमार हतो. महाराजने जरा शांति थइ. आ वखते मुनिराज श्री रविसागरजी महाराज साहेबजी वैराग्यमां लीन थयां. अनित्यादि बार भावनाओ भाववा लाग्या, अने शरीरथी चेतन न्यारो छे. तेने अने
आत्मा ने अनादिकालथी संयोग थयो छे. शरीर विनाशी छे. हुं अविनाशी छु. शरीर रुपी छे. अने हूं
आत्मा अरुपी छं, कर्म संयोगे आ आत्मा चार गतिमा भटके छ. शरीर मारु नथी. हूं शरीर नथी. चारीत्र मार्गमा जे जे दुषणो लान्यां होय तेनो पश्चाताप क. रवा लाग्या. तीर्थयात्राओनुं स्मरण करवा लाग्या. स्मरण करता करतो निद्रा आववा लागी. रात्रीना वखते