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________________ तत्पर थया. महाराजजीनुं शरीर दीनप्रतिदिन क्षीण थवा लाग्यु. तोपण वैराग्य तो वृद्धिनेज पामतो हतो चउसरण प्रयन्नो तथा नव स्मरण महाराजजी दररोज गणता हता. संवत १९५४ ना जेठ वदी १० ना रोज महाराज साहेबजीने रात्रीए श्वास उपड्यो. तेथी महाराज जीए पोताना शिष्य मुनिश्री सुखसागर___ जीने कह्यु के-हवे मने सारां सारां स्तवन, सज्झा यौ संभळावो. सूखसागरजी संभळाववा लाग्या. ते वखते श्री आत्मारामजीना शिष्य श्री चारित्रविजयजी तथा श्री धर्मविजयजी तथा धर्मगुरु श्री कपूरविजयजी तथा अमीविजयजी विगरे पासे हता. प्रबंध लखनार हुँ पण ते वखते पासे हतो. मारा उपर आ प्रख्यात मुनिराजनी करुणा द्रष्टि हती. मने याद करवाथी हूं
SR No.008643
Book TitleRavisagarji Jivan Charitra Shok Vinashak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherBuddhisagar
Publication Year
Total Pages128
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & History
File Size3 MB
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