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श्रीमदिलादुर्गेशांतिनाथस्तोत्रम् ॥
( भुजंगप्रयातवृत्तम ) सदाक्रान्तशान्ति महामारिशान्ति,
मजाशान्तिदं शान्तवैरिप्रभावम् । महाक्रोधचण्डारि शान्तिप्रतान
मिलादुर्गसंस्थं स्तुवे शान्तिनाथम् ॥ १ ॥ कलौशान्तिदानप्रदं शान्तमूर्ति
सदा देवदेवाधिपः स्तुत्यकीर्त्तिम् । गुणान्कीर्तितुं नो समर्थोऽपि जीव
इलादुर्गसंस्थं स्तुवे शान्तिनाथम् ॥२॥ शशी तिग्मरश्मिः समेतौ किमत्र,
यदीयावतंसच्छलेन स्वभावात् । प्रभोर्दर्शनाकांक्षयोद्भूतमोदा
विलादुर्गसंस्थं स्तुवे शान्तिनाथम् ।। ३ ।। विभोर्भालपट्टस्थितं शुद्धरत्न
मनर्थ्य सदोद्योतयद्धाम सर्वम् । प्रदीपौ प्रकुर्वद्विभावर्जितौ द्रा
गिलादर्गसंस्थं स्तुवे शान्तिनाथम् ।। ४ ।।
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