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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५५) यानी बलिहारीरे, तप० ॥१॥ द्रव्यभावथी तप आचरवू, भवसागर वेगे तरचुं, निश्चय निज गुणमा नळवं, समन्नावे रही सहु करवूरे, तप० ॥२॥ परपुद्गल मोह न धरवो. निश्चय तप गुण ए वरवो, द्रव्यनाव काम संहरवो, प्रभु पूजी तपदिल करवोरे. तप०॥३॥ द्रव्य जाव तपस्वीसेवा, करवा प्रगटे दिल हेवा; एतो अनुभव अमृत मेवा; तपसीनी सहाये देवारे. तप० ॥४॥ जे जे कर्म उदयमां आवे, सुख दुःखपणुं दर्शावे; शुनाशुभ बुद्धि नहीं लावे, रहे ज्ञानी सम तप भावरे. तप ॥ ५॥ नाम रूपमा मोह न धारे, करे कर्मने स्वाधिकारे; उपकारमा जीवन गाळे, संघ सेवा तपते भारेरे. तप० ॥ ६॥ करे सद्गुरु साधु भक्ति, कोइमां नहीं धारे आसक्ति; राखे नहीं सात जातनी भीति, एवी ज्ञानी तपस्वी रीतिरे. तप० ॥ ७॥ शुद्ध उपयोग छे तपभारी, पामे ज्ञानी जन संस्कारी; ध्यान सहज समाधि सारी, रहे वृत्ति न कोइ विकारीरे. तप०॥८॥ पुरुषार्थथी तप आचरशो, यथाशक्ति भावथी For Private And Personal Use Only
SR No.008633
Book TitlePooja Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1922
Total Pages417
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size15 MB
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