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( ३१) पंचम साधुपद पूजा.
दोहरा. अप्रतिबद्ध जे विश्वमां, कर्म योगी निष्काम; साधे आतम साधना, रमता आतमराम. ॥१॥ मुनि तपसी अनगारी जे, साधु संयत नाम; यति ऋषि त्यागी श्रमण, आर्य भिक्षुक गुणधाम. ॥॥ थाश्रव त्यागी महंत जे, अनेक जेनां नाम; वंदो पूजो प्रेमथी, संत प्रनु विश्राम. ॥ ३ ॥ ॥ श्रोधवजी संदेशो कहेजो श्यामने ए राग ॥
प्रीतलमीने सांधो साधु साथमां, साधु संगते प्रभुनां दर्शन थाय जो, पंचम आरे दुर्लभ साधु संगति, मुनि भजतां जन्म जरा दुःख जाय जो,प्रीतलडी० ॥१॥ साधु संगतथी समकित प्रगटे खरु, ज्ञान अने चारित्र भलु प्रगटायजो, संतनी संगे रहीए श्रद्धा प्रेमथी. एक पलकमां धार्य निश्चय थाप जो. श्रीललडी ॥२॥ पंचम आरे मुनिनी श्रद्धा प्रीतडी, करतो आतम परमातम झट थार
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