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(१४) सकल संघमां शांति वतों, इति उपद्रव शामो; स्नात्र महोत्सव सुणनाराने,-गानारा सुख पामो; ॥ १४ ॥ परब्रह्म महावीर प्रतापे, रोग टळो सहु जाति; पुष्ट देवना टळो उपद्रव, व्हेम टळो बहु भाति; गाम नगर पुर देशमा शांति, वतों प्रभु प्रतापे; आधि व्याधि संकट टळता, प्रभु महावीर जापे. ॥ १५॥ सर्व जगत्मा शान्ति वों, धर्मी बनो नरनारी, दोषो क्षय पामो नक्तिथी, जनो बनो उपकारी; झघमा युद्धो उपशम थायो, वृष्टि थशो मनमानी; पुण्य कर्म वधशो जगमांहि, वधशो शक्ति मानी. ॥ १६ ॥ तप गच्छ होर विजयसूरी जगगुरु, पट्ट परंपरधारी; पूज्य गुरु रविसागर प्रगटया, सर्वोपम जयकारी; शान्तिदायक सुखसागर गुरु, घर घर मंगलकारी; बुद्धिसागर सूरि आशीः, शान्ति लहो नरनारी ॥१७॥
फूल तथा केशरवाळा चोखाथी प्रभुने वधाववा.
पछी सिंहासनमांथी प्रभुजी तथा सिद्धचक्रजोने लश् चोखा पाणीयो पखाळ करी त्रण अंगबुहणां
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