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( ३१४) अथ पंचधा योग पूजा.
परम प्रभु परमातमा, प्रभु महावीर जिनेश; परमब्रह्म परमेश्वरा, प्रणमुं विभु विश्वेश ॥ १॥ पंच योग पूजा रचुं खातम शुद्धि काज; अष्टप्रकारे पूजना, करतां शिव साम्राज्य. ॥ २ ॥ अध्यातमने जावना, ध्यानने समता चार; वृत्तिसंक्षययोगथी, पूर्ण शुद्धि सुखकार ॥ ३ ॥ योगनो भूमिका प्रथम, अनुक्रमे पांचे योग, सुणतां ध्यावतां संपजे; यातम शिव सुख भोग. ||४|| आतम सुख निश्चय थता, योग रुचि प्रगटाय, पंच योगनी साधना; कर्मविनाशक थाय. ॥ ५॥ महावीर देवे प्रकाशिया, असंख्य योग सर्व मुख्य दर्शन ने, ज्ञान चरण छे उदार. ॥ ६ ॥ तेमां सहु योगो शमे, तोपण जवि हितकार; पंचयोग दर्शा विया, तस पूजा सुखकार ॥७॥
प्रकार,
प्रथम योग भूमिका पूजा.
प्रभु महावीर जिनेश्वर भाखे, योग भूमिका सारजी; योग भूमिका शुद्धि करतां, मन शुद्धि नि
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