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( २९१) प्रभुगुण अमृत पीजीए, जिनराजने प्रेमे पूजाए; अव्यथकी शुजगंधी पुष्पे, प्रभुनी पूजा कोजीए, जावयकी व्रतपंचाचारना, पुष्पे पूजीने रोझीए. जिनराज० ॥१॥ क्षयोपशम उपशमने क्षायिक, आतमगुणे प्रकटीजीए; बातमगुण अनुयायी चेतना, प्रगटावी सुख लीजोए, जिनराज ॥२॥ प्रभु तुजयी मुज लगनी लागी, मुज पर करुणा कोजीए; बुद्धिसागर आप्तम आनंद, रसनर प्याला पीजीए. जिनराज ॥३॥
षष्ठी पुष्पमाला पूजा. पुष्पमालथो पूजता, प्रभु गुण प्रकटे अंग; ईयल भमरी ध्यानयो, चमरी पद लहे रंगः ॥१॥
चेतन अब मोहे दरिशन दोजे. ए राग..
प्रभुजी महावीर तुज रढ लागी, थयो तुज गुण अंतर रागी. प्रनुजी० तुज गुण गणतां पार न आवे, कोटी वर्ष वही जावे; तुज अनुभव झांवो
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