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(२८०) जिनदर्शन मोहनगारा, ए रागनी चाल.
गुरुदर्शन छे सुखकारी, गुरुसंतनी जे बलिहारीरे. गुरु. द्रव्यगुणपर्याय विचारी, ध्यान समाधिधारी; आतमरसियाने अविकारी, गुरुनी गति के न्यारीरे. गुरु. ॥१॥ बातम असंख्यप्रदेश विहारी, द्रव्यजावव्यवहारी; षडावश्यक धर्माचारी, उत्कृष्टा अन गारी रे; गुरु. ॥२॥ अंतरथी नहीं जडनीयारी, आतम परिणति प्यारी; क्रियायांगी साचा उपकारी, संत सदा जयकारी रे. गुरु. ॥३॥ गुरुमूर्ति द्रव्यत्नावथो प्यारी, शुद्धप्रदेशी सारी; कर्म करे पण निर्बध भारी, सर्वजीव आधारो रे. गुरु.॥४॥ गुरुनी अकलकला सहु न्यारी, समजे नहि अविचारी;बुद्धिसागरध्याननैवद्य-धरतां सुख निर्धारीरे. गुरु. ॥५॥ ___ ॐ है। श्री अर्ह महावीर परमेश्वर पट्ट परंपर शोभित गुरुपद ध्यानार्थ नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥
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