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(२५९) स्तिभारी, जयजयगुरु तुज जग बलिहारी; द्रव्यनावथी पंचाचारी, उपयोगी गुरुजी हितकारी. अक्षत. ॥ २॥ पंचमहाव्रत पालनकारी, प्रतिबोध्यां बहुलां नरनारी; एकांते गुरुजी सुखकारी, अंतर यात्मप्रदेश विहारी. अक्षत.॥३॥ आतम सुखसागर गुरुयारी, रोमेरोमे लागी यारी; बुद्धिसागरगुरु अनगारी, आनंद मंगलप्रद अविकारो. अक्षत. ॥४॥
ॐ अँई महावीरजिनेश्वरपट्ट परंपर प्रवर्तित श्री गुरुपूजार्थ अक्षतं यजामहे स्वाहा ॥
सप्तमी ध्यानरूपा नैवेद्यपूजा. ध्यानरूप नैवेद्यथी, गुरुपूजा करनार; उपशम क्षयोपशम अने, क्षायिकगुण वरनार. ॥१॥ असंख्य प्रदेशी आतमा,प्रतिप्रदेशे अनंत; गुणपर्यायनाध्यानथो, प्रगटे शिवपदकंत. ॥२॥ बाह्य नैवेद्यना रसवडे, नित्य तृप्ति नहि थाय; आतमरस नैवेद्यथी, जडरस रुचि विणशाय. ॥३॥
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