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(१९२) णमां केवल उलवे, नासे भाव उदास ॥१॥ अनंतजीवो पामिया, समता योगे मुक्ति; समतावण मुक्ति नहीं, साधे कोटि युक्ति. ॥ २॥ सर्व धर्म मत पंथमां, समत्वथी छे मोक्ष; समत्वपणुं सहु धर्ममां, मुक्तिभाव परोक्ष. ॥३॥ सर्व व्रतादिक सार बे, समता धारो भव्य; समत्व सामायिक भर्बु, थावश्यक कर्तव्य. ॥ ४ ॥ नयव्यवहारथी बे घडी,
आराधो नरनार; निश्चय समता हेतुछे, सेवो नवि सुखकार. ॥ ५॥ चउनिक्षेपे धारीए, सातनये ते जाण; द्रव्यभावथी सेवतां, प्रगटे सम्यग् ज्ञान. ॥६॥ समताभावः सर्वदा, त्यागी निश्चय नाव: समता ते चारित्रछे, उपयोगे दिल लाव. ॥ ७॥
प्रभु पडिमा पूजीने पोसह करीएरे-ए राग.
समताभावे सामायिकमा रहीएरे, सामायिक योगे शिवसुख थायजे; समभावे रहेवाथी अनुभव जागेरे, स्थिरताना योगे तत्त्व जणायडे, अंतरना
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