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(१६८) माजी, पगपर रांधीरेखीर; तो पण समभावे रह्याजी, परमेश्वर महावीर, महावीर० ॥८॥ पार्श्व प्रभु समता धरीजी, कमठे कोधोरे रोष; नासापर जल आवियुंजी, तोपण रोष न तोष. महावीर० ॥९॥ वृत्ति शुनाशुभ नहीं रहेजी, प्रगटे केवलज्ञान; आपोआप प्रभु विभुजी, चिदानंद भगवान्. महावीर ॥१०॥ ग्रहण त्याग इच्छा नहींजो, वर्ते पूर्व प्रयोग, समभावे शुद्धातमाजी, चिदानंद गुणभोग. महावीर० ॥ ११ ॥ शुभाशुल वृत्ति विनाजी, कर्म निकाचित लोग; जोगवतां तनु वर्ततांजी, केवळ ज्ञाननो योग. महावीर ॥१२॥ हर्षशोक सुखःखमांजी, समता भावेरे वर्त; बुद्धिसागर आत्ममांजी, अनंत आनंद शर्त. महावीर ॥ १३ ॥
कलश-गीत. गायो गायोरे महावीर जिनेश्वर गायो. नवविध किरिया भक्तिथी पूज्यो, आतम अनु
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