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दोशी नथुभाइ मंगराम, हेते एह रचंतरे वास्तुक०॥६॥ शेठ बगनलाल बेचर काजे, कीधी रचना भावे; संघ सकलमां आनंद मंगल, रूहि वृद्धि सुख थावरे ॥ ए वास्तुक० ॥७॥ तपगछ ममन हीरविजयसूरी, जसगुण सुरनर गाया; तास शिष्य श्री सहेजसागरजी, नपाध्या य कदायारे ॥ ए वास्तुक० ॥७॥ पाट परंपर नेमसागरजी, क्रियावंत महंत; तास शिष्य श्री रविसागरजी, वैरागी गुणवंतरे ॥ए वास्तुका ॥॥ संवेगी आतम गुणरंगी, सुखसागर गुरु राया; गामो गाम विहार करता, विद्यापुरमां आयारे॥ ए वास्तुक० ॥१०॥ चढते नावे दर्ष उल्लासे, कीधी रचना एह; नव्यजीवने अमृत समए, चातकने जेम मेहरे ॥ ए वास्तुर्क०॥ ११॥ शांति तुष्टि सुखसंपदा प्रावे, रोग शोग दूर जाय; बुद्धिसागर शाश्वतपद लही, मुक्तिवधू
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