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(१८)
ए, संवेगी अणगार ॥नवि०॥तस शिष्य सुखसागर गुरू ए, गामोगाम विहार ॥नवि०॥ ॥ वसो नगर पधारीया ए, संघ सकल हरखाय।। ॥नवि०॥ऋषन्नदेव तीर्थकरु ए, नीरखी आ नंद थाय ॥नविण ॥॥ तास पसाये ए रची ए, पूजा अष्टप्रकार ॥ नवि०॥नयो नगावो सांनळो ए, नावथकी नर नार ॥ नविण ॥१॥ मेरुपरे ए स्थीर थ ए, करजो जवि मनवास॥ नवि०॥चं सूर्य जब लग रहे ए, जगमां कर ता प्रकाश ॥ नविण ॥ ११ ॥ तब लग पूजा वि स्तरो ए, शांति तुष्टि करनार ॥ नविण ।। रूद वृद्धिसुख संपदा ए, पूजाश्री थानार ॥नविणा १॥ संवत नगणीस उपरे ए, नंगासाग्नीसा स॥नवि०॥ फागण वदी एकादशी ए, पूजापू र्ण विशाल ॥नवि०॥१३॥
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