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परमात्मान गद्रव्यछे, तेना चारगुणछे. मूर्त अचेतन जीवपणायकी सीत. सक्रिय एटले मळवा विखरवारूप क्रिया करेछे, शुमलपरमाणु अनंतछे. परमाणु बाळयो चले नहीं, भेयो भेदाय नहीं, परमाणु दर्शन चक्षु अगोचर जाणवु. द्विपरमाणु संयोगी स्कंधने द्विप्रदेशी स्कंध कहेछ, अनंत परमाणु संयोगी कंध रष्टिगोचर यायछे, ते व्यवहार परमाणु कहेवायछे. निश्चयनये तो स्कंधकथायछे. एक परमाणुमा एक वर्ण एक गंध एक रस अने बेम्पर्श रह्याछे, परमाणुथी बनेला केटलाक स्कंधो चक्षुधी देखाय पण हाथमा पकडाय नहीं, केटलाक स्कंधोनो स्पर्श ग्रहाय किंतु चक्षुषी देखाय नहीं जेम वायु. केटलाकनो गंधग्रहाय पण पक्षुग्रास थइ शकतो नथी जेम कस्तुरीना पुद्गल स्कंधो विगेरे. एम विचित्र स्वभावयुक्त पुद्गलस्कंधो थायछे. अने विचित्र पदार्थ बनेछे. पधात् विखरी जायछे. यावन्त पदार्थो चर्मचक्षुयी ग्राह्यछे ते सर्व पुद्गल छे. केटलाक पुद्गल स्कंधो चर्मचक्षुधी पण अग्राह्य छ, अंधकार तथा प्रकाश पण पुद्गल द्रव्यछे. कर्म पण पुद्रल ट्रव्यछे, पंचधा औदारिकादि शरीर पण पुद्गल द्रव्यछे. बादर पदार्थना ज्ञानथी सूक्ष्म पदार्थ स्वरूप अनुमाने जणायछे, पत्थर मृत्तिका आदि सर्व पुद्गल द्रव्य जाणवां. एकेंद्रिययी यावत् पंचिद्रि जीवोए पुद्गल स्कंधोने शरीरपणे ग्रही स्वसत्तामा लीधाछे, ते सर्वपुद्गलद्रव्यछे, पुद्गलद्रव्य जीवद्रव्यना गुणोने आच्छादन करे. पुद्गलद्रव्यरूपी छतां जीवद्रव्यने बाधा करेछे. प्रश्न-जीवनी अनंति शक्ति छ, तेने पुद्गल द्रव्य शुं करी शके ? उत्तर-अधुना कर्मधारक जीवोनी अनंति शक्ति तिरोभावे सत्तामा
पर्ने छ, किंतु आविर्भावे शक्ति प्रगट या नथी अनादि का.
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