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परमात्मदर्शन.
दुहा
समकितदायक सद्गुरु, तेनुं नहिं मन भान; परोपकारी बुद्धि वण, ते भटके अज्ञान. ॥ ६२ ॥
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समकित दायक सद्गुरुना उपकारनुं जेने भान नथी ते परोपकृतिथी अजाण सम्यकत्वनो सार फल पामी शके नहीं, उपकार बुद्धिनी विफलताए गुरुना विनयना अभावे राखमां घी होम्या जेवुं थाय ते संसार समुद्रनो पार पामी शके नहीं. " दुहा.
( ६५ )
समतिदायक गुरु अने, दीक्षा गुरुमां भेद; अंतर रवि खजुआ समो, सुशिष्य मनमां वेद. ६३ दीक्षा दायक महामुनि, धर्मगुरु जग जोय; समजे समजु सानमां, करो न संशय कोय ६४
भावार्थ- सम्यक्त्व दायक धर्मगुरु अने दीक्षा गुरुमां घणो भेद छे क्यों, रवि अने क्यां खद्योत एटलो अंतर हे सुशिष्य मनमां जाण. दीक्षा प्रदायक गुरु बाहुलताथी धर्मगुरु होइ शके छे. कारण के - धममाप्ति जेनाथी थइ होय ते दीक्षा आपे तो ते होइ शकेछे, समजु सानमां समजशे शंसयनुं कंइ प्रयोजन नथी. धर्मगुरुनो उपकार कोइ पण रीत्ये वळे तेम नथी.
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दुहा.
एवा गुरुने सेविए, थइए सद्गुण धामः गुण धारी शिष्यो लदे, शिवपुरनो विश्राम. ६५ सद्गुणधाम भूत गुरुपदपंकज सेवत अनेक गुणधाम भूत