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रिमार्थि शिष्यलक्षण.
दुग्धपानसदृश अयोग्यने तत्त्वोपदेशछे, योग्य अने अयोग्यनी परीक्षा करवी गुरुमहाराजना हस्तमांछे, बिडालना उदरमा खीर टकती नथी तद्वत् अयोग्यना हृदयेधर्मतत्त्व टकतुं नी. अविनयीने गुप्तधर्मतत्त्वरहस्य आपq आत्महितकर यतुं नथी.
संप्रति काले धर्मतत्त्वनो उपदेश शाक भाजीपालानी पेठे योग्य अयोग्यनी परीक्षारहीत दृष्टिगोचर थायछे, तेथी वाक्क्लेश वा अल्पफळनी प्राप्ति थायछे, खेडुत पण भूमीनी परीक्षा करी वाववा योग्य धान्यकाळे बावेछे, तो धर्मरुप बीज योग्यायोग्यनी परीक्षा कर्या विना काळविना कोइपण मनुष्यना हृदयमा रोपवू, ते अनुचित्त, चिंतनीयछे. जगत्मां मनावा पूजावानी लालचे जगवना प्रवाहमां पडेला गुरुनाम धरावनाराओ गमे तेम उपदेश आपी भोळा जीवोने फसावी पोताना वशमां करी लेइ राचेछे, माचेछे, ते पोतानु तथा अन्यतुं यथायोग्य भलं करी शकता नथी. सद्गुरु स्वतंत्रछे, योग्य होय तेहने उपदेश आपे, अन्यथा मौन रहेछे.
कुयुक्ति करनारा अने पोतानी पंडिताइ जणावनारने सद्गुरु अंतकरणथी उपदेश आपता नथी, तेमज गुरुना वचन उपर विश्वास नथी तेनी साथे गुरुजी माथाकूट करता नथी. पत्थर उपर कमल उगे तो अविश्वासीने गुरुनो उपदेश लागे. गुरुना उपदेशथी वच्चमां पोतानु डहापण चलावनार गुरुभक्त कही शकाय नहीं, हालना काळ मां गुरुभक्त थर्बु मुश्केलछे, केटलाक पत्थर समान कुगुरुओछे, पोते संसार समुद्रमां बूडे अने स्वआश्रितोने बुडाडे, संसार समुद्र तरवामां केटलाक पांदडा समान गुरुओछे, अने केटलाक वहाण समान छे, एमजाणी सद्गुरुर्नु अवलंबन कर, ए
परमार्थ छे.
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