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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुल्ली गुप्ता, लाभ, अलाभ, सुख, दुःख, शत्रु, मित्र, जीवितव्य, मरण: आदि प्राप्त यता जेनुं समचित्त छ अने सांसारिक पदार्थो मति उदासीनता जेना हृदयमा वर्तेछे एवा सद्गुरुमुनिवर संसारूप समुद्रमा नाव समानछे. निंदक खुशीथी (बेलाशक ) एवा मुनिवरनी निंदा करो, अने पूजक भावथी भले पूजो, धूर्तों भले ढोंगी फहे, पण एवा. महात्मा सर्वने समभावे निरखे छे. बीजाना भला मुंडा कहे तेमा पोताने शुं ? - ज्ञानिगुरुमहाराजा आत्मानी गुणसृष्टि अंतर्दृष्टि योगे नीहाळी प्रमुदित थायछे, आत्माना असंख्यातमदेशोछे, एकेक प्रदेशे अनंत ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्यादि गुणो सदा शाश्वत भावे रबाछे, वळी आत्मा पोताना स्वरूप रूपीछे, पुद्गलनी अपेक्षाए अरूपीछे, झामरूप उपयोगनी अपेक्षाए साकारछे, दर्शनरूप उपयोगनी अपेक्षाए निराकारछे, वळी शाश्वत आत्मामा उत्पादव्यय अने ध्रुव समय समये वर्तेछे, वळी आत्मामां स्थित अगुरुलघु षड्गुणहानि वृद्धि करेछे, ए आत्मा पुदगल द्रव्य साथे मिलेछे तोपण ते थकी न्यारोछे, अनंत ऋद्धिनो भोक्ता मारा आत्मा विना परद्रव्यनी साये मारे कंइ संबंध नथी, मारो आत्मा कर्मे अवरायोछे, पण ते गुगो मारा नष्ट थया नथी, मारा आत्माना गुगोने उपमा आपवी व्यर्थछे, अहो हुं आत्मा अखंडछु, सर्व पदार्थनो हुं समये समये ज्ञाता छ, त्रग भुवनमां एवो कोइ पदार्थ नथी के माराथी अजाण्यो होय, हुं प्रकाशकछु, अन्य द्रव्य प्रकाश्यछे, साता अशाता ए. हुं जाणुंछु, पण तेथी हुं न्यारो छु, मारुं स्वरूप वाच्यावाध्य वैखरी भाषाथी छे, मारा अनंता गुणोछे तो हवे मारे पर. भावमा रमणता केम करवी ? एम विचारी आत्माना मुणो तरफ For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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