________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परमात्मवर्षन,
व्यक्तिथी सहु भिन्न छे, सत्ता ए सहु एक; आत्मतत्त्व अवबोधथी, मानो एकाऽनेक. १४८ सर्वत्रज व्यापक कहो, युक्ति घटे नहि कोइ: सम्मतितर्के जाणशो, कयु विचारी जोइ. २४९ सर्वत्रज व्यापक कहो, पिण्डे किम बंधाय; देहे व्यापी जो कहो, अव्यापक पद पाय. १५० व्यापक नहि बंधाय छे, गगन पङ्कनी पेर; सर्वत्र सुख दुःखनी, प्राप्तितणुं छे झेर. सर्वत्र व्यापक कहो, कदा नहीं बंधाय; मानो तो छ अझता, सद्युक्ति न जणाय. १५१ अव्यापक छे आतमा, तेमां नहीं संदेह; व्याप्यने व्यापक बोधथी, थाशो निःसंदेह. १५३ शैलेशीकरणे करी, व्यापक आतम लोक; असंख्य शुद्ध प्रदेशथी, जाणो भविजन थोक.२५४ अव्यापक व्यापक लहो, चेतन गुणनी खाण; अनेकान्त अवबोधथी, पामो शिवपुर ठाण. २५५ सादि आदि भंगें करी, व्यापक चेतन जाण; स्थादाद दृष्टि थकी, साचुं मनमां आण..१५५
For Private And Personal Use Only