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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org परमात्मदर्शन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " दोहा. " ब्रह्मथकी सृष्टि बनी, सहु छ ब्रह्म स्वरूप; व्यापक ते सर्वत्र छे, चिदानन्द गुणरूप. मायाना बहु जोरथी, भूल्यो ब्रह्मनुं भान; एकरूप सर्वत्र छं, अद्वैतवादि ज्ञान. शुद्ध ब्रह्मना अंश छे, जीव अनन्ता लेख; परमात्ममांहि ते भळे, द्वैतपणे नवि देखअद्वैतवादि वचन छे, माने ब्रह्मनुंज्ञान; द्वैतपणुं माने नहीं, ब्रह्मध्यान मस्तान. नहि सत्यने ढांकीये, सत्य न ढांक्युं जाय; छाबडीए रवि ढांकतां, कदी नहीं ढकाय. जड चेतनता भेदथी, द्वैतपणुं प्रगटायः For Private And Personal Use Only १३७५) · ~~~~~~ २२८ २२९. २३० २३१ कथं एक हि आतमा सुख दुःख विघटाय २३३ जडतारूपे जड अहो, जडनो कदा न नाश; २३२ २३५ असत् कहो शा कारण, ज्ञानी बहु शाबाश. २३४ जीवाजीव बे तव छे, ज्ञाने दोय जणाय; मिथ्या एक ग्रहे मुधा, सम्यक् धर्म न थाय ज्ञानी ज्ञानथकी ग्रहे, वस्तु सत्य स्वरूप; द्वैतपणुं अंगीकरे, पडे न भवजल कूप. एक एव दि आतमा, भूते तेह जणाय; जले प्रतिबिम्ब चन्द्रनुं, तद्वत् जाणो न्याय. २३६ २३७
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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