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परमात्मदर्शन.
( ३७३ )
कामनी ? तेना प्रत्युत्तरमां जणावेछे के-ईश्वरनी ज्ञानादिक अनन्त शक्तियो ईश्वरमा समायछे. कूपनी छाया कूपमां समायछे ते प्रमाणे अत्र न्याय समजवो. जडद्रव्योनी अनन्त शक्ति जडमां व्यापी रहीछे. पुद्गलद्रव्यना वर्णादिकनी शक्ति पुद्गलद्रव्यने त्यजी अन्यत्र जती नथी. मुलद्रव्यनो निश्चयथी अन्यद्रव्य कर्त्ता शीरीते होइ शके,
आत्मद्रव्यनी अपेक्षाए पुद्गलद्रव्यनी शक्ति अल्प गणायछे. पण वस्तुतः जेम आत्मद्रव्यनी आत्मस्वरूपे अनन्ति शक्तिछे तथा पुद्गलद्रव्यनी शक्ति पण तेना स्वरूपे अनन्तछे. सापेक्षा अवबोधतां aiser कारनी हानि आवती नथी. तालपूटविषलेशथी हस्तिना प्राणनो नाश थायछे, एक लेशमात्र तालपुटविषथी हस्तिनो प्राण नाश थाय त्यारे कहोके पुद्गलनी शक्ति केटलीछे: आत्मानी शक्ति अपेक्षाए मोटीछे तेमज पुद्गलनी शक्ति पुद्गलनी अपेक्षाए मोटीछे. आ उपरथी सिद्ध थायले के शुद्धबुद्धपरमात्माथी सृष्टि बनी शके नहीं, माध्यस्थदृष्टिवाळा पुरुषो सहजमां तत्त्व अवबोधी शकेछे. ईश्वर सर्वज्ञ परभावरूप सृष्टिनो कर्त्ता नथी. एवी प्रतिज्ञा युक्तिमतीछे.
चोराशीलक्षजीवयोनिमां जीवो परिभ्रमण करेछे. अज्ञान राग द्वेष प्रयोगे जीव संसारमां परिभ्रमण करेछे. कर्मयीज संसारमां परिभ्रमण थाय छे. कर्या कर्म प्रमाणे सुख दुःख थायछे त्यारे शामाटे हे ईश्वर में मने दुःख आप्युं एम असत् वदवुं जोइए. अनादिकालथी जीवनी साये कर्मनो संबंधछे. भावकर्म रागद्वेपयोगे जीव द्रव्यकर्मने ग्रहण करेछे. तेने भोगवी विखेरेछे.. पञ्चकारणनी सामग्री मळे त्यारे कर्मनो नाश थायछे. कर्म नाश थतां अविचल आत्म स्वरूपनो सहेजे विकाश थायछे.
इशु, विभु, परमब्रह्म, परमेश्वर, सुखधाम ब्रह्मनी स्थिति शुद्ध
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