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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन वामां कथं समर्थ वाय. नैयायिक कहेछे के सृष्टिनो कर्ता ईश्वर सत्य छे पण ते पूर्वोत युक्तिथी विचारतां सत्य नथी. ईश्वरनी इच्छाथी जगत् उत्पन्न थयुं एम मानवामां आवे तो अनादिकाली जड अने चेतन ये पदार्थ छे. एम अनादिस्वभाव केम न मानवामां आवे, अर्थात् त्यां एकत्र पक्षपातिनी युक्ति कइ छ के अनादिकालनो स्वभाव न मानवामां आवे अने इच्छाज मानवामां आवे. इच्छा मोहरूप छे. ईश्वरने इच्छा कहोतो साधारण मनुष्यनी पेठे ईश्वर पण मोही ठयों त्यारे तेनुं ईश्वरपणुं रहेतुं नशी. माटे ईश्वरनामा इच्छा मानवी ते शसशृंगवत् असत्य छे. आत्मानी परमात्मदशामा ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य, सुखादि गुणो उपादान कारणछे. तेनो परिपूर्ण आवि र्भाव तेज परमात्मपणुं जाणवू. अनन्तधर्मनी शुद्धि प्रगटाववा निमित्त हेतुनी जरूरछे, आत्माना धर्मनो आविर्भाव तेज कार्य जाणवू. घटन कारण जेम मृत्तिका अनन्य कारण कहेवायछे तेम परमात्म दशारूप कार्यमां ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूप अनन्य कारण उपादानछे. घटनो नाश थवाथी मृत्तिकानो नाश थतो नथी. अर्थात् कारण सदाकाल वर्तेछे. अत्र काल, स्वभाव, नियति, कर्म, अने उद्यम पंच कारणथी कार्योत्पत्ति थायछे. पंच कारगमाथी एक कारणनी उत्थापना करतां मिथ्यात प्राप्त थायछे. आ बाबतमा लेशमात्र पण शंका करवी योग्य नथी. राग अने द्वेषनो सर्वथा जेणे क्षय कर्योछे ते ईश्वर परमात्मा कहेवायछे. एवा शुद्ध परमात्माने जो इच्छा कहेवामां आवे तो ईश्वरतानो नाश थायछे. सर्व प्रकारनी इच्छानो जेणे नाश कर्णोछे एवा ईश्वरने जगत् करवानी इच्छा क्याथी होय. अलबत कदी होय नहीं, रामद्वेषसहचारिणी इच्छाज संसारनुं मूलछे. अने तेकीइच्छा For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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