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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन. ( ३६९ ) कारण कोण ? निराकार ईश्वरने जगतनुं उपादान कारण मानतां जगत् रूप ईश्वर बन्यो. ए पण महादूषण आवे छे. सिध्धान्त एवो छे के निराकारथी साकारनी उत्पत्ति थती नथी. माटे निराकारथी जडसृष्टि रचाती नथी एम सिध्ध ठरेछे. वळी नियम एवोछे के उपादान कारणथी कार्यनो अभेदछे, जेम मृत्तिकारूप उपादानथी घटरूप कार्यनों अभेदछे. मृत्तिकाथी घट भिन्न नथी. तेवीज रीतिथी निराकार ईश्वरथी जड सृष्टि मानवामां आवे तो जगत् रूपज ईश्वर बन्यो, सृष्टिरूप कार्यथी ईश्वरनो अभेद थयो माटे जडसृष्टिरूप ईश्वर मानवामां आवे तो अनेक दू षणरूप खेदनी प्राप्ति थायछे, सृष्टिकार्यमा ईश्वरने निमित्त हेतु मानतां वे विकल्प उत्पन्न थायछे, ईश्वरनी शक्ति नित्यछे के अनित्यछे ? उपादान कारण विना फक्त निमितकारणथी कोइ कार्य बनतुं नथी. कार्यनी पूर्वे उपादान तथा निमित्तनो सद्भावछे. उपादान विना निमित्तभूत ईश्वरथी सृष्टिरूप कार्य बनी शके नहीं, ईश्वरनी इच्छा निमित्त हेतु कोइ माने तो ते पण योग्य नथी, कारण के ईश्वरनेइच्छा होती नथी. अपूर्णने इच्छा होयछे. कृतकृत्य परमात्माने अंशमात्र पण इच्छा होती नथी. प्रमाण युक्ति अनुभवथी विरूद्ध सृष्टिहेतु ईश्वर कल्पातो नथी. तेम ari यदि ईश्वर मानवामां आवे तो रासभने केम मानवामां न आवे ? पृथिवी आदि परमाणुओनुं ग्रहण करीने ईश्वर सृष्टि रचेछे एम जो मानवामां आवे तो जीवो क्यांथी आव्या. जीवो अनादिकालनाछे एम कहेवामां आवे तो सृष्टिपण अनादिकालथीछे एवं केम मानता नथी. अनादिकालना जीवो सृष्टि विना अन्यत्र रही शकता नथी माटे सृष्टि पण अनादिकालथी छे एम स्पष्ट भासेछें. परमाणुओना कार्यथी चेतन (आत्मा) भिन्नछे माटे अरणिमां वन्हि रहेछे तेवी रीते आत्मा For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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