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वर भगत् कर्तृत्व निराकरण
करेछे ते शुद्ध परमात्मारूप ईश्वरने जडवस्तुनो कर्ता मानी भ्रांतिमा पडेछे. कर्मरूप मलिनता जेनामां नथी एवा सिद्धबुद्ध परमास्माने भुं प्रयोजनछे के सृष्टिनी रचना करे. हे भव्य पक्षपात त्यंनी माध्यस्थ दृष्टियी अवबोध.
. परमप्रभु, परमब्रह्मरूप ईश्वरमा रजोगुण, तमो गुणादि नथी. इच्छा नथी, अभिमान नथी, वेदांतमा पण कडूंछ के-न च स पुनरावर्तते मुक्तिमा गएला आत्माओ शुदबुद्ध थइ पश्चात् संसारमा जन्म लेता नथी. रागद्वेषरहित सिद्ध (ईश्वर) जइसृष्टिनो कर्ता कदा बनी शकतो नथी. जइसृष्टि रचवानो सिद्धबुद्धमां स्व. भाष नथी ते माटे. प्रश्न-सिद्ध परमात्मा जडसृष्टिना की नथी मानता त्यारे अन्य
कोइ सृष्टिना की छे के नहीं.. उत्तर-सिद्ध परमात्मा-ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य; मुख आदि
आत्माना अनंत शुद्ध गुणरूप सृष्टिना कर्ताछे. क्षायिकमावे आत्माना शुध्धरूप सृष्टिना कर्त्ता सादि अनंतमा भंगेछे. प. रमाणु आदि जडसृष्टित्व स्वभावना बीलकुल कर्ता नथी. जे
आत्माना शुध्ध क्षायिक धर्मना कर्ता थया ते कर्मरूप सृष्टिना कर्ता की थता नथी. माटे विवेकदृष्टिथी भव्यात्मन् सत्यतत्त्व विचार,
याक् उपादान कारण होयछे तादृक् कार्यनी उत्पत्ति थायछे; जेम मृत्तिकारूप उपादान कारण जेवू होयछे तेवू घटरूप कार्य बनेछ. उपादान कारण कार्यरूप बनेछे. घटकार्यमां कुंभकार निमित्त कारणछे. घटरूप कार्यमां उपादानकारण मृत्तिकाछे. अने निमित्तकारण कुंभकार. दंडचक्र वगेरेछे. तेम जो कर्मरहित परमात्माए जगत् बनाव्यु एम कोइ माने तो तेमां उपादान अने निमित्त
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