SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 362
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org परमात्मदर्शन. (३५१/ शोधतां जणायछे. बाह्यदृष्टिथी देखतां जडवस्तु जणायछे. अने जडवस्तुमा आत्मपणुं नथी. जडवस्तुथी भिन्न अरूपी आत्मानो निर्धार करी स्वस्वभावमां रमवुं योग्य छे. जडवस्तुनो धर्म परिहरीने आस्मानो धर्म देखो जोइए. मनवाणी अने कायाना वेपारमां आत्म धर्म नथी. आत्मानो धर्म त्रियोगनी क्रियाथी तथा लेश्याथी पण भिन्नछे, धारणा तथा ध्यानरूप संयम अवलंबीने हे भव्यजीव आत्मानुं स्वरूप देख. संयममां विघ्नभूत बहिरुपाधि परिहरीने स्वस्वरूपमां रमतां शाश्वतकल्याण ज्ञानमय आत्मा थायछे. आत्मज्ञानी आत्मामां रंगायचे त्यारे तेने बाह्यवस्तु भ्रांतिमय लागेछे. तेथी तेने बाह्य वा वेपारमां आचारमां प्रेम रहेतो नथी तेथी जगत् लोको आत्मज्ञानीने (उन्मत्त ) गांडो बनी गयो एम जानेछे, त्यारे आत्मज्ञानी एम जाणेछे के जगत्ना लोको आंधळा छे. पोतानी रूद्धि आत्मामां नहीं देखतां जडवस्तुमां राचीमाची रहेछे. अरे तेवा अ ज्ञानी जीवो जन्मजरा मरणनां दुःख पाये तेमां शुं आश्रर्य ? एवं ज्ञानीने अज्ञानीनी दृष्टिमां भेद पडेछे, अने एक बीजाने भिन्न दृष्टिथी देखेछे. आत्मज्ञानी अनंत ज्ञान दर्शन चारित्रनो घामभूत आत्माने मानतो आत्मामांज स्थिरउपयोगथी रमणता करी क्षणेक्षणे अनंतानंद भोगवेछे, आवी शुद्धदशामां रागद्वेपना परिणामनी ग्रंथी छेदायछे, अने रागद्वेषना अभावे शून्यपणुं वतयछे, अने आत्मानी सहजशांति प्रगट थाय छे. ज्ञानीने आवी सहज शांतिदशामां जे भान वर्तेछे ते जणावेछे: 66 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 77 दुहा. भासे एक आतमा, सोऽहं सोऽहं ध्यान; तत्वमसि आकारमां, चिदानंद भगवान् ॥१४९॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy