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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन अवधु पियो अनुभवरसप्याला, कहत प्रेममतिवाला-अ. अंतर सप्त धातरस भेदी, परमप्रेम उपजावे परवभाव अवस्था प्रगटी, अजवरूप दर्शावे. अ० नखशिख रहत खुमारीजाकी, सजल सघनघन जेंसी; जिण ए प्याला पिये तिणकुं, और बात हे केंसी. अ. अमृत होय हलाहल जाकुं, रोगशोगनवी व्यापे; रहत सदा घरगाय नशासें, बंधन ममता कापे. अ० सत संतोष हैयामां धारे, जनमनां काज सुधारे, दीनभाव हीरदे नहि आणे, अपनो बिरुद संभारे. अ. भावदया रणथंभ रोपके, अनहद तुर बजावे; चिदानंद अतुली बलराजा, जीतअरि घर आवे. अ० ___ वळी तेमज श्री आनंदघनजी महाराज पण कहेछेकेआतम पियाला पीओ मतवाला, चिन्ही अध्यातम वासा आनंदघन चेतन व्हे खेले, देखे लोक लोक तमासा. आशा ओरनकी क्या कीजे. .. अनुभवगम्य एवं आत्मिक सुख बाडेंद्रियथी कदी जणातुं नथी. बहिरात्मी प्राणीओ आत्मिकसुखनो गंध पण अनुभवी श. कता नथी. साकरनो स्वाद जेम विषनो कीडो जाणी शकतो नहीं तेम अज्ञानी जीव आत्मिकसुखनो लेश पण जाणी शकतो नी. शाश्वत एवं आत्मिक सुख साध्य जाणी तेनी प्राप्ति अर्थे सदाकाल चारित्र धर्मनी आराधना ज्ञानी मुनिवर्यो एकाग्र चित्तवी कर For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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