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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन, मुक्तात्मा थे प्रकारनाछे. एक केवलज्ञान संपादन करी आयुष्य विशेषे रहेला अने बीजा चउदमुं गुणस्थानक स्पर्शी सिद्ध स्थानकमां गयेला. हवे तेरमा गुणस्थाककवी केवलज्ञानी महात्माओ भाषा घर्गणाना पुद्गलयोगे उपदेश आपी तत्वस्वरुप समजावी जगज्जीवोनुं कल्याण करेछे. अने सिद्धमां गया बाद सिद्धस्वरुपे थतां: जगत् जीवो सिद्धनुं ध्यान करी स्वस्वरुप प्रगटावेछे एटले तेमां पण कल्याण प्राप्तिमा जगज्जीवोपति सिध्ध परमात्मा निमित्त कारणीभूत छे, ते विना द्रव्यदयारुप उपकार करवा अर्थे ते सिध्ध परमात्मानी स्वाभाविक शक्ति नथी कारण ते वीतराग थयाछे, सर्वजीवना कल्याणमां उपादान कारणनी अपेक्षाएतो पोतेज कारणछे. अन्य तो तेमा निमित्त कारण छे. आ वात सूक्ष्मदृष्टिथी सद्गुरू पासे समजतां यथातथ्य समजाशे. कोइ जीव तो इंद्र आदिदेवतारूपे थर्बु तेनेज मुक्ति मानेछे. कारण के तेनाथी आगळ सूक्ष्म ज्ञानदृष्टिथी जोवायु नहि तेजकारण छे, जेम के इशुत्रस्त आदि मतवाला एम मानेछे के परमेश्वर सुवर्णना सिंहासन उपर बेठोछे अने तेना मस्तके मुकुट विगेरेछे एम कहेवाथी समजायछे के ते देवयाोन पैकी कोई देवने परमेश्वर मानी विश्वासयोगे एममाने छे. कारण के पूर्व भवनो रागी अने संबंधी कोइ देव आ प्रमाण करी शके अने तेथी भ्रांतिमा फसावु पडे. एम ख्रीस्ति धर्ममां होय तो ते अपमाण कही शकाय नहीं, माटे सर्वांशे परिपूर्ण अनुभवगम्य जिनदर्शनमा जे मुक्तिस्वरूपछे ते सत्यछे. मुक्तिमा अनंत सिद्धोनी अवगाहना भेगी होयछे. शिष्य-हे गुरो ! अवगाहनानुं शुं स्वरूपछे अने ते अवगाहनारूपी छे के अरुपी ? For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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