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परमात्मदर्शन.
(१३) आत्माने लागती नथी-कारणके वस्तुओ थकी पोतानो आत्मा
न्यारोछे, तेथी ते विरोध सिद्धभगवान्मां घटतो नथी. थाशंका-सिद्धात्माओ अनंत सुख समये समये भोगवेछे ते केवल ज्ञानथी के, केवलदर्शन गुणथीसमाधान-सिद्धात्माओ केवलज्ञानथी सर्व वस्तु जाणेछे अने
केवलदर्शनथी सर्व पदार्थोने देखेछे. अने सिद्धात्माओ सुख भोगवेछे ते अव्याबाध नामना गुणथी भोगवेछे तेथी पूर्वोक्त विरोधनो सर्वथा नाश थायछे.. ते उपरथी सिध्ध स्पष्ट भासेछे के जडस्वरूप मुक्ति नथी परंतु शुद्ध चैतन्य स्वरूप मुक्तिछे.
कोइवादी आकाशनी पेठे सर्वत्र व्यापिनी मुक्ति मानेछे ते पण यथार्थ घटना बहिर छे. कारणक, मुक्तआत्मा आकाशनी पेठे सर्वत्रव्यापक नथी. सर्वत्रव्यापक आत्माने मानतां बंध मोक्ष व्यवस्था घटती नथी. जेम आकाश सर्वत्र व्यापक छे तो ते कोइनाथी बंधाय पण नहीं अने बंधावाना अभावे मोक्ष पण घटे नहीं. तेम आत्माने कर्मपण सर्वत्र व्यापक मानवाथी बंधाय नहीं अने बंधाभावे मोक्ष पण कहेवाय नहि एम दोष स्पष्ट भासेछे, माटे सर्वत्र व्यापिनी मुक्ति सिद्ध ठरती नथी. सर्वव्यापिनी मुक्ति मानतां प्रथम सर्वत्रव्यापक आत्मा मानवो पडशे. अने सर्वत्रव्यापक एवा आस्माने बंध मोक्ष घटतो नथी. वळी सर्वत्रव्यापिनी मुक्ति मानवामां अनेक विरोध आवेछे, माटे त्रिशलातनये श्री सर्वज्ञमहावीरे प्ररुपेली मुक्ति यथातथ्य सत्य छे. अने ते प्रमाणे मानवामां कोइ जातनो विरोध आवतो नथी. ____ वळी कोइ मतवादी मुक्तिमा स्वामी सेवक भाव स्वीकारेछे ते पण युक्तिहीनछे. कर्म खप्याथी सर्व आत्माओ मुक्तिमा सरखा
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