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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन, जे पावपंक मइला, ते मइला जीवलोयांम ॥ १॥ खणमित्तं सलिलेहि, सरीरदेसस्स शुझिजणगंज कामंगंति निसिद्धं, महेसिणंतं नणु सिणाणं ॥२॥ भावाथी-मलथी मेला, कादवथी मेला थएला, अने धूलथी मेला थएला माणसो मेला नहि गणाय. पण जे पापरूप वंकथी मेला थएल होय ते जीवो आ लोकमां मेला जाणवा वळी स्नानमां जलवडे क्षणभर शरीरना बहिर्भागनी शुद्धि थायछे, अने जे जल स्नान कामर्नु अंग गणायछे ते जलथी महर्षियोने स्नान करवानो निषेधछे उक्तंच श्लोक. स्नानं मददर्पकरं, कामांगं प्रथम स्मृतं ॥ तस्मात् कामं परित्यज्य, नैव स्नांति दमे रताः १ स्नान ए मद अने विषयाभिलाषनुं कारण होवाथी कामर्नु प. हेलं अंग गणायछे. माटे कामने त्याग करनार अमे इंद्रियोने दमवा तत्पर थएला यतिजनो बीलकूल स्नान नथी करता. के.टलाक लोको समज्या विना एम बोलेछे के जैनना मुनियो स्नान करता नथी. तेमने कहेवारों के जैनना साधु शास्त्राज्ञा मुजब वर्तेछे तेथी विषयाभिलाषजनक स्नान- तेमने कंइ प्रयोजन नथी. ब्रह्मचारी सदासुचिः ब्रह्मचारी पुरुष सदा पवित्रछे. तेने दातण स्नाननी कंइ जरूर नथी वळी श्रीकृष्ण, पांडु पुत्रने नीवे मुजब उपदेश आपेछे. श्लोक. आत्मानदी संयमतोयपूर्णा, सत्यावहा शीलतटादयोर्मिः तत्राभिषेकं कुरु पांडुपुत्र, नवारिणाशुद्धयति चांतरात्मा? For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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