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( १८४ )
कर्मराजा भने धर्मराजानुं बुद्ध.
अदेखाइ परस्पर कराववी ए मारो धर्मछे. गुणीना गुण देखी माणसो अदेखाइ करेछे. चारगतिना जीवोमां हूं आविर्भावे वा तिरोभावे वसुं
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वेपारी वेपारीने, राजा राजाने, वकील वकीलने, साधु साधुने हुं मांहोमा अदेखाइयी कर्मबंध फळ प्राप्त कराकुंछु.
मारा वश थरला जीवो नरक निगोदमां जइ दारुण भोगवेछे इत्यादि अदेखाइना वचन सांभळी कर्मराजा खुशी थयो. तेवामां सभामां विराजमान मिध्यात्व नामनो कर्मराजानो योद्धो बोली उठयो के, हे कर्मराजाजी मारा छतां आप केम चिंता करोछो. हुं मिथ्यात्व नामनो योद्धो संसारमां प्रख्यात छु, कर्मबंध जीवाने करावनार मुख्यताएं हुं हुं, मारी सत्ता संसारी जीवोपर सारी रीते बेठेलीछे. मारु मुख्य काम ए छे के, भव्य जीवोने शुद्ध देव शुद्ध गुरु अने शुद्ध धर्मनी श्रद्धा थवा देवी नहीं, कोई विरला प्राणी तीर्थकरनो कहेलो सत्य मार्ग जाणी शकेछे, जुओ में केटला जी - बोनी एवी ता बुद्धि करी नाखी छे के ते बिचारा पंच महाभूत स्वरूप जीवछे ते थकी अन्य आत्मा नथी एवं बिचारा मानी चार्वा किमतरूप राक्षसना मुखमां प्रवेश करेछे
में केटलाक जीवोने एवा तो फसाव्याछे के- ते पामर जीवो जीव अजीव पुण्य पापने स्वीकारता नथी, मोक्ष मानता नथी. खावुं पी, हरवुं, फरबुं इत्यादि कार्यमा धर्म मानेछे-केटलाक जीवोने एना तो में फसाव्या छेके - अज्ञानपणामां मुख मानेछे. 'अने तेत्रो अज्ञानवादी भ्रभावे छेके अज्ञानमां सुखछे ज्ञानथी राग द्वेष उत्पन्न थागछे. एम मानी पामर चतुर्गति संसारमा अनंतशः परिभ्रमण करेछे.
aat में केटलाक जीवोने एवातो फसान्याछे के बौध धर्म
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