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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२८ ) आत्मज्ञानभी कर्मनो नाश. प्रश्न- निश्चय नयी शुद्ध आत्मानोज ज्यारे धर्मछे तो व्यवहार धर्म आदरवानुं शुं कारण छे. एक फक्त निश्चय आश्मिक धर्म आदरवो जोइए. उत्तर - व्यवहारधर्म विना निश्चयधर्म प्रगट थतो नथी. जेमके - बाजरीना दाणtni उगवानी घणी सारी शक्ति रहीछे तोपण ज लनो संयोग थतां उगी नीकळे छे. तेम व्यवहारधर्म विना निश्चय धर्मनी प्राप्ति थती नथी प्रश्न - मरुदेवी माताए व्यवहारधर्म आदर्यो नहोतो. तेम छतां केम तेमने निश्चय आत्मधर्मनी सिद्धि थइ. प्रत्युत्तर - कारण विना कार्यनी निष्पत्ति थती नथी. तो अवश्य समज. जोके मरुदेवी माताए देशथीना सर्वथी चारित्र ग्रं नहोतुं . तोपण व्यवहारधर्मने अवलंव्यो हतो तेथीज निश्चय आत्मिक धर्मने प्रगटाव्यो. जिज्ञासु -हे सद्गुरो मरुदेवी माताए कयो व्यवहार धर्म आदर्यो हतो. ते समजावो. सुगुरु- मरुदेवी माता प्रथम श्री रूषभदेव भगवान्ना दर्शन करवा arei ए पण व्यवहारधर्मछे तेमज मरुदेव माताए मनवचन अने काया एत्रण योगनी गुप्ति करी, एटले मनवचन अने कायाना व्यापारोने परभावमा जता अटकाव्या. धर्म ध्यान ध्यायुं ते रुप व्यवहारथी उत्तम ध्याने चडयां. शुक्ल ध्यानध्यायी अंतकृत् केवली थह मोक्षमां गयां पुत्रमेम नाश थवानुं कारण मरुदेवी माताने समवसरण थयुं. ते पण व्यवहार, तेमज तेथी संसारनी असारता उद्भवी, ते पण व्यवहारथी उत्पन्न थइ. मनवचय कार्याना खराब आथवना व्या पार रोक्या. अलबत धर्मध्याना दिध्यावतां रोकाणा, पश्चात् शुक्ल ध्यान ध्यावतां निश्चय आत्मिक धर्म प्रगटयो, ते आत्मिक धर्म For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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