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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२६ ) पुद्गस्वरूप. १. पुद्गलपिंडना ने खंड कर्यं पोते फरी मळे नहीं ते काष्ट पा पाणादिक बादर बादर भेद प्रथम जाणवो. २ पुद्गल स्कंध खंडखंड कर्या पोतानी मेळे परस्पर एकमेक थ जाय एवां दुग्ध, घी, तेल वगेरेने बादर कहे छे. ३ जे पुद्गल स्कंधो देखवामां स्थूल होय - खंडखंड करवामां आवे नहीं हस्तादिकथी ग्रहण थाय नहि, एवा धूप, चंद्र, चांदनी, आदिपुद्गलवादरसूक्ष्म कथाय छे. छायातम पुद्गलो पणजाणव. ४ जे स्कंधो सूक्ष्मछे किंतु स्थूलोपलंभ होय. स्पर्श, रस, गंध वर्ण, शब्द विगेरे सूक्ष्म बादर जाणवा. ५ जे पुद्गल स्कंधो अति सूक्ष्मछे इंन्द्रियोना ग्रहवामां आवता नयी एवा कर्मवर्गणादिक सूक्ष्मपुद्गल कहेनायछे. ६ कर्मवणाओथी पण अतिसूक्ष्म द्वयणुकस्कंध आदि सूक्ष्मसूक्ष्म कहेवाय छे. पूर्वोक्त स्कंधोनुं मूलकारण परमाणुछे, परमाणु शब्दरहीतछे जोके स्कंधोना मिलापथी शब्दरूप पर्यायने धारण करेछे तो पण व्यक्तरूप शब्दपर्यायथी रहीत छे. वळी परमाणु अविभागी एटले भाग रहीत छे. पृथिवी, अप अग्नि, वायु ए चारनुं कारण परमाणुआछे अर्थात् पृथिवी अप अनि बायु ए चार भूतो पण परमाणुओधी पेदा थायछे. वळी परमाणु परिणमन भाववाळोछे. परमाणु अशब्द छे तोपण शब्दतुं कारणछे. परमाणु पोते द्रव्यछे अने तेमां वर्ण, गंध रस अने स्पर्श ए चार गुणोछे अने ते मूर्त कवायछे. पृथिवी जाति परमाणुओमां चारे गुणोनी मुख्यता छे. जलयां गंध गुणनी गौणता, अने बाकना त्रय गुणोनी मुख्यताछे. अग्निगां गंध अने रस गुगनी गौणता, अने स्पर्श वर्गनी मुख्यताछे. वायुमां त्रण गुणोनी गौणताछे, अने स्पर्श गुणनी मुरुपता छे. For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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