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परमात्मदर्शन.
( १९९ )
वखतमां जाति स्मरणज्ञान उत्पन्न थवानो निषेध नथी. केटलाक सद्गुरू संगतिहीन अनार्यमति अज्ञानी आत्मानो पुनर्जन्म मानता नथी एवा नास्तिक शिरोमणि ज्ञानदृष्टि शून्य जीवो परमपद पामी शकता नथी. जीव पण अनादि कालथी आ संसारमांछे अने जीवने कर्मपण अनादिकालथी लाग्यांचे ते कर्मनायोगे अवतारो ग्रहण करवा पडेछे तेनी साबीतीना हेतुओ-नीचे मुजब.
१ जोड कहेवातां छोकरां नानपणमां एक सरखां होवा छतां अने तेमने एक सरखी रोते उछेरवामां आव्या छतां पाछळथी तेओना विचार आचारमां भिन्नता पडेछे तेनुं कारण कर्म जाणवुं.
२ पिता पुत्रना देखावनुं सदृशपणुं छतां बन्नेनी अक्कल अने विचारमां जे आसमान जमीननो तफावत जोवामां आवे छे तेनुं कारण पण कर्म जाण.
३ एक माबापना के पुत्र छतां एकने कविता बनाववानी सहेजे शक्ति उत्पन्न थायछे अने बीजो अभ्यास करतां पण कम बुद्धिमान् अने कविता करी शकतो नयी तेनुं कारण पण कर्म जाव. कारण के एकने ज्ञानावरणीय कर्मनो क्षयोपशम थयो छे अने बीजाने थयो नथी.
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४ आ पृथ्वीमां एक दुःखी, अने बीजो सुखी एक जम्पथी अंध, लुलो, लंगडो, बाधेर, वा भीखारीना पेढे ज. म्मी मरण पर्यंत दु:ख पामनार थाय छे, त्यारे बीजो मनुष्य देहथी सुखी सारा कुळमां पेदा थयेलो, धनथी सुखी बुध्धिमान्, तथा मान सन्मान पामनार जोवामां आवछे तेनुं कारण जीवे पूर्व भवमा करेलां पाप पुण्य तेनुं फल जाणघुं.
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