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परमात्मरन,
शरीर मारूंछे एम मानवू नही, कारण के ते पुद्गलछे..शरीरथी न्यारो आत्मा भाववो, शरीर आत्म धर्मनी प्राप्तिमा निमित्त कारणछे एवं, उपरना प्रश्ननो उत्तर थयो. प्रश्न-गजसुकुमाल मुनीश्वरे श्मशानमां शरीर घासनो उपसर्ग केम
सह्यो ? केम तेमणे शरीरनो घात करवा दीधो ? प्रत्युत्तर-गजसुकुमालेतो काउसम्म को हतो अने एवी तेमनी
श्रद्धा हती के शरीरना उपसर्गथी पण चळया नहीं. सर्व जीबोने माटे एवी स्थीति नथी. अंतरथी भिन्त्रपणे आत्मभावर्मा वर्तवू ? व्यवहारथी तेनु संरक्षण करवू, गज मुकुसालनी एवी भवितव्यता हती. तेमन तेनी अंतर्भावना प्रवर्द्धमान इवी, तेथी एवी स्थीति बनी. एकांत जैनमार्ग. नथी तेथी शंका करवी नहीं, काल, स्वभाव, नियति, कर्म, अने. उद्यम ए पंच कारणोथी मोक्षरूप कार्यनी सिद्धि थायछे, शरीरनी सार्थकता व्रतधारण तपश्चर्या विगेरेथी छे. अंते शरीर आत्मानुं थयु नथी अने थशे पण. नहीं, नित्य पर्व सम शरीरनी लालना पालना करवामात्रथी आ. स्महित यतुं नथी पण तेथी धर्मनां कार्य करवाथी आत्महित थायछे ? त्रण धन दरेक मनुष्यनी पासे रहेछे, प्रथम बाह्य धन. सुवर्ण, रू', जाहीर, रत्न, राज्य विगेरे जाणवू, ते बाह्य धन अनित्य चंचल जाणवू, कोइनी पासे बाह्य धन वि. शेषछे तो कोइनी पासे स्तोकछे. ए बाह्य धननी अपेक्षाए गरीब तांगरमां भेद पडेछ, बाह्य धनने मादे अनेक प्रकारना उयोगो क्लेशो देशोदेश परिभ्रमण आदि उपाधियो वेठबी पहेछे. किंतु ए बाह्य धननो ढगलो मरती खते. साये. लेइमो नथी भने ले जानो नयी बाब धननी ममदार महर
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