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( १९३ )
'आत्मस्वरूप.
आत्माधी न्याराछे, चक्षुवी देखाता आकारो अने स्वप्नमां देखाता आकाशे पुद्गल द्रव्यनाछे, अने पुद्गल द्रव्ययी आत्मा त्र कालमा निश्चयनयतः जोतां भिन्नछे, माटे भिन्न वस्तुमां आत्मपणानी बुद्धि भ्रांति मात्र छे, माटे जेवी स्वप्नमां देखता पदार्थो मारापणानी बुद्धि खोटी तेना सरखीज चक्षुषा देखता पदार्थोंमां मारापणानी बुद्धि खोटी जाणवी . प्रश्न – स्यारे चक्षुथी देखाता सर्व पदार्थो असत्य समजवा ? अने जो ते असत्यछे तो तेमां ममत्त्व भाव केम उत्पन्न थायछे ? प्रत्युत्तर - चक्षुथी देखाता सर्व पदार्थों पुद्गलना पर्यायोरूपे सत्य एटले अस्तित्त्व युक्त जाणवा, अने ते पुद्गल पर्यायरूप पदार्थो आत्मस्वरूपे नथी एटले आत्माथी भिन्नछे, आत्मपणुं तेमां कंड नयी माटे आत्मअपेक्षाए ते असत्य जाणवा, आत्मद्रव्यमां पुद्गल पर्यायरूप पदार्थोनुं अस्तित्व नथी किंतु आत्मद्रव्यमां पुद्गल पर्यायरूप पदार्थोनी नास्तिता सदा समये समये परिणमी रहीछे, तदपेक्षया असत्य जाणवा, अने पुद्गलरूपे ते सत्य जाणवा, माटे पुद्गल वस्तुओ ज्ञानदृष्टिथी जोतां आमाथी अत्यंत भिन्नछे तेमां मारापणानी बुद्धि अज्ञान तथा मोहथी उत्पन्न थायछे, ज्यारे अज्ञान नाश यतां ज्ञान प्रगटेछे त्यारे मोहनो नाश थतां परवस्तुमां थती अहंममत्वबुद्धि नाश पामेछे.
शंका- ज्यारे आ प्रत्यक्ष देखातुं
शरीर पोतानुं नथी एम जायुं
त्यारे कोइ शरीरनो घात करे तो शुं करवा देवो ? समाधान - कोइ शरीरनो घात करे तो बिलकुल करवा देवो नहीं. अने उलडं शरीरनुं संरक्षण करवुं यतः शरीरमाद्यं खलु धर्म
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