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परमात्मदर्शन.
(५) हुं शाथी छ ? अनादि एटले जेनी आदि नथी एचो हुँ आत्मा अनादि कालथी अज्ञानयोगे तथा रागद्वेषयोगे अशुद्ध परिणति योगे अष्टक र्मग्रही अने ते कर्मयोगे शरीर ग्रही तेमां कर्मथी वस्यो छ.
द्वितीय विषयविचार-हुं चेतन के जड ? अलबत ज्ञानदृष्टिथी विचारता हुं ज्ञानमय चेतनछु, चेतन, आत्मा वा जीव ए त्रण प्रर्याय वाची शब्द जाणवा. हुं जडथी भिन्नछु, अनंत काळ गयो पण हुं आत्मा अव्ययर्छ, अजीव पदार्थने हुँ जाणुंछ तेथी हुं तेनो ज्ञातार्छ अने ते ज्ञेय पदार्थछे, जेटली दुनियामां वस्तुओ देखायछे तेथी हुं भिन्नछं पंचभूतथी पण हुं भिन्नछु, पुद्गलास्तिकाय, धर्म, अधर्म, आकाश, कालद्रव्य, अजीवछे अने हुं तो जीवछं.
तृतीय विषयविचार-देखाती वस्तुओमां हुं आत्मा नथी. जे जे वस्तुओचक्षुगोचरथायछे ते स्वरूप हुं नथी, ते दृश्यमान धनादिकमां मारापणुं मानवु ते स्वमनी पेठे भ्रांतिछे, अर्थात् स्वममा देखाती वस्तुओने मारी मानवी ते जेम खोटुं भ्रांतिछे, तेम चावडे देखाती वस्तुओमां मारापणुं मानवू ते केवळ भ्रम मोहदशाछे. अभ-चक्षुथी दृश्यमान वस्तुओथी अनेक प्रकारनां कृत्यो थाय
छे, कोइ वस्तुओ आहाररूपे होयछे, तेना भक्षणथी क्षुधा शमेछे, चक्षुथी दृश्यमान जलथी तृपा शान्त थायछे, एम प्रत्यक्षने वस्तुओना फायदा मालुम पडेछे, तोते पदार्थाने स्वमना पदार्थो सरखा केम कह्या ? स्वमना पदार्थोथी कंइ कार्य यतुं नथी. अने चक्षुद्वारा दृश्यमान पदार्थोथी कार्य थायछे माटे
सादृश्यपणुं शी रीते संभवे ? प्रत्युत्तर-हा अलबत स्वमना पदार्थो अने चक्षुषा दृश्यमान पदार्थोमां कार्यभेदे मोटुं आंतरूंछे, पण चक्षुथी देखाता पदार्थो तेमज खममा भासता पदार्थोमां आत्मा नथी, अलबत ते बे
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