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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारममा रमणता कर. समभाव सहित विचित्रदर्शनभेदे अपुनर्बधी जे चोथु गुगठाणुं तेनी जे क्रिया ते पग ययपि धर्मना विघ्नने कर. नारीछे, तो पण भला आशय थकी अशुद्ध क्रिया करे ते पण भुदकडेवाय जेम ताम्ररसानुबेये सुवगताने पामेछ, तेम अत्र समजवू, अन्योऽन्य क्रिया, विषक्रिया, गरलक्रिया, तहेतुक्रिया, अमृलाक्रिया एपंच प्रकारनी किया जाणवी. तेमांनी आय त्रग क्रिया त्याज्य जाणवी.तद्धेतु, अने अमृत क्रियानी प्राप्तिथी मुक्ति थाय छे, अनेकान्त मार्गमां कदाग्रह करवो नहीं, समयसिंधुन बिंदुग्रही मकलावू ते व्यर्थ छे, मतकदाग्रहग्रस्तपना जीवोनी रागद्वेषयोगे सर्व क्रिया दुःखनु धाम एटले स्थान छे, स्वात्मोत्कर्ष मान पूजा कीर्तिने माटे परात्मापकर्षकारक क्रियावादी स्वात्महित निरपेक्ष पणाने लीधे साधन साध्य बुद्धि शून्यताथी परमात्म पद साधी शकतो नथी, सापेक्षपणे व्यवहार निश्चय पूर्वक जिनाज्ञा सहित तोतु अमृत क्रियानु अवलंबन करीने भव्यात्माओ अखंड निर्मल शाश्वत सुखमय शिवस्थाननी प्राप्ति करे छे, जे भव्यो क्रिया, अजीरणजे निंदा तेनु सेवन करेछे ते मुक्तिपदना अधिकारी यता नथी, अमुकमा अमुक दोषछे, अमुक तो आम करेछे, इत्यादि परभाव परिणति ज्या सुधीछे त्यां सुधी आत्तध्यान अने रौद्र ध्याननी क्रिया जाणवी. अंतर्दृष्टि थतां धर्मध्याननी क्रिथा थइ शकेछे, जगत्मा रोगो अनेक प्रकारना होयछे, तेमज औषधो पण अनेक प्रकारांछे, कोइने उधरस थइ होय ते अमुक औषधथी मटे अने ते उधरस कोइने ते दवाथी मटती नथी. सूरतथी विहार करता मीयागाम आव्या त्या श्री दुर्लभविजयजी साथे दीपविजयजी तपस्वी हता तेमने उधरस घणी हती, तेम ताव पण हतो ते गाममा मोटा मोटा मरचा खाबाथी उधरस मठी तो भव्यात्माओने समजवान के भावरोगी जी For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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