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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रमात्मदर्शन. लमां यूंटी मनरूप प्यालाथी पीवेछे. तेथी शुद्ध चेतनारूप नीशो मु. नीवर महाराजने एवो चढे छे के ते वखते अगम निगम दर्शाय छे. अने ते समये शरीर अने शरीरीनु पण भान रहेतुं नथी अने ते वखते अनहद आनंद थायछे. आवा मुनिराजने सुख थायछे ते अनंत छ. श्री यशोविजयजी उपाध्याय अध्यात्मसारमा कहेछे के श्लोक. कान्ताधर सधा स्वादात्, यूनां यज्जायते सुखं । बिंदुः पार्थे तदध्यात्म शास्त्रस्वादसुखोदधेः १ अध्यात्मशास्त्र संभूत-संतोष सुख शालिनः गणयंति न राजानं नश्रीदनापि वासवम्. २ भावार्थ-स्त्रीना अधर रूप अमृतना स्वादथी युवान पुरुषोने जे सुख थायछे तेतो भ्रमणा मात्र छे, तात्विक सुख नथी, ते सुख तो अध्यात्म शास्त्रना स्वादथी उत्पन्न थयेलं दरिया समान सुख तेनी आगळ बिंदु समान छे. अध्यात्म शास्त्रथी उत्पन्न थयेलं संतोष रूप सुखना भोक्ता जे पाणी छे ते पाणी राजाने तथा धनदने तथा इंद्र सरखाने पण लेखामां गणता नथी. श्लोक. रसो भोगावधिः कामे, सभक्ष्ये भोजनावधिः अध्यात्म शास्त्र सेवाया रसो निरवधि पुनः १ कामने विषे भोगवतां मुधी रसछे, मिष्ट भोजनने विषे जमवाना वखत पर्यंत मथुरपणुंछे. पण अध्यात्म शास्त्रनी सेवानो जे रस ते तो निरवधि छे. कारण के अध्यात्मशास्त्रनो रस प्रारंभ पालथी मांडीने प्रतिदिन वृद्धि पामेछे. ते रस कोइ वखत बदलातो For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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