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परमात्मदर्शन.
( १३५ )
माटे आपणे तो वेश्याओनो नाश जोवामां आनंद मानीशुं - कोइ व्याकरण शाखना विद्वाने नैयायिकने कां हे नैयायिक तुं बादशाह महलमां संतानो छे ते वातने खरी बात माने छे के खोटी त्यारे नैयायिके कां वे - बादशाह वाक्यं प्रमाणं वा अप्रमाणं वा, तस्य वाक्यं सत्यं वा असत्यं वा एतत् कार्यस्य किं प्रयोजनं, इदृशं पूर्व न भूतं कदापि बादशाह गांडो थयो हशे, कदापि महलमां तेने शोधवा जतां बादशाह मारी नांखे तथा बळी एक एवी शंका थाय छे के-बादशाह महलमां छे तेषां शुं प्रमाण ? प्रत्यक्ष प्रमाण प्रत्यक्ष विरुद्ध छे. अनुमान प्रमाणमां कोइ हेतु अव्यभिचारी सिद्ध यतो नथी, उपमान प्रमाण पण सादृश्यना अभावथी बाधितछे. आगम प्रमाणनी पण अत्र सिद्धि यती नथी, माटे अमो तो बादशाहने शोधवानुं बंध राखी आ प्रत्यक्ष देखाती वस्तुओ जोवामां आनंद मानीभुं त्यारे व्याकरणशास्त्रवेताए कयुं सत्यं सत्यं भवतां कथनं पादशाह वाक्यं प्रमाणीभूतं मया न ज्ञायते - कोइ स गां संबंधीनी वातो करवा लाग्या, बागनी मनोहरतानी एवी खुबी हती के पगले पगले विचित्र जोवानुं मळे, खावानुं मळे, केटलाक तो वृक्ष तळे सुइ गया, केटलाकएक बीजाने वस्तुओ ओळखावा लाग्या, केटलाक रुपैया खर्ची टीकीटो करावी तमासा जोवा लाग्या, केटलाक एम विचारखा लाग्या के बादशाह बुद्धिमान् छे, तेनी ओछी माया नथी ते एवो संताणो हशे के आपणा हाथमां आववो मुइकेलछे, माटे आपणा करता होइए ते करो. केटलाक एम चिंता लाग्या के ज्यारे आ बागमां पण एवी भूलवणी चुकवणी छे के आपणे भूला पडीयेछीये तो बादशाहना महेलमां तो बहु भूलवणी चुकवणी हशे के जेथी शोधवाने बदले आपणे भूला पडीए तो अतोभृष्ट ततोभृष्ट थइए. केटलाक सुंदर परीओ देखी सेमां
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