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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२४) सरलता. करे ते श्रावकनी आगळ एवं बोलेके ते भद्रिक महामुनि तेमने जाणे पण पोतानामां कंइ होय नहीं. श्री चिदानंदजी महाराज कहेछे केकथनी कथे सहु कोइ, रहेणी अति दुर्लभ होइ जब रहेणीका घर पावे, तब कहेणी लेखे आवे. १ निष्कपटी अने कपटी साधुओनी परीक्षा करवी दुर्घटछे, महा बुद्धिना धणी एवा अभयकुमार सरखा कपटी वेश्या श्राविकार्नु कपट जाणी शक्या नहीं, तो बालजीवोनुं शुं कहेवू ? जेने मान पूजा कीर्तिनी लालच गइछे एवा पुरूषोने धन्यछे, विवेकी सुज्ञ पुरूप हंसनी पेठे कपटी अने निष्कपटी साधुओनी परीक्षा करी देछे, कपटी एम धारेछे के हुं अन्यने छेतलं छं पण कपटथी तेना आत्माने कर्म छेतरी पोताने वश करेछे ते आणी शकतो नथी. आखी दुनीयामां कपटजाळ मोह राजाए पाथरीछे तेमां मनुष्यादिक रूप माछलां बिचारां अंतरना अज्ञाने सपडायछे. अने विविध दुःख पामेछे, जे ने खरेखहें निज आत्मानुं ज्ञान थायछे ते कपटजाळने छेदी नाखेछे, निष्कपटी पुरूषोनी वाणीमां द्विधाभाव रहेतो नथी, निष्कपटी मनुष्य जेवू होय तेवू कहेछे. कपटीनी वृत्ति काक सदृशछे. पोताना दोपने गोपवनार लोक पोतानुं गौरव मान पूजा जेम थाय तेम दंभथी आचरण करेछे, अहो केटली अ. ज्ञानता ? जेनो अंते त्याग करवानोछे तेनामां मुंझावु ए बालजीवोनुं लक्षणछे. प्राणी मनमां परमार्थबुद्धिथी विचारे तो कपट करवानुं कंइ कारण नथी. एम विश्वास थाय. गुरुमहाराजने पण कपटी शिष्यनो विश्वास आवतो नथी. ज्ञानी गुरुराजनी पासे जइ कोइ प्राणी कपटथी पृच्छा करे तो ते तुरत जाणी लेछे. अने तेथी पृच्छकने अयोग्य जाणी मौन धारेछे, कपटी एवं जाणीने कपट For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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