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अदेखाइनो नाश करवो.
वो जोइए. अदेखाइ रूप नागण हृदयमां पेसतां आत्माना गुणो हणामछे. परना गुणो सांभळी तथा परजीवनी कीर्त्ति सांभळी प्राणी विचारे छे के हाय, हाय ते माराथी वधारे वखगायछे लोकोम तेने वधारे मान मळेछे, एनी जो भूल का वा एना उपर कंड कलंक चढे तो ठीक थाय एम पाप विचार करी लोकोनी आगल निंदा करे. खोटां कलंको चहाववां. ए सर्व अदेखाइनुं फलछे. नागण कदापि कोइने करडे तो सारी पण अदेखाइरूप नागिणी जे प्राणीने डसेछे तेनुं आ भवमां तथा परभवम पण खराब थायछे, अदेखाइ ज्यां सुधी हृदयमांछे त्यां सुधी आत्मज्ञान
तुं नथी. वकील वकीलनी साये अदेखाइ, साधु साधुनी साये अदेखाइ, वेपारी बेपारीनी अदेखाइ, शोक शोक ने अदेखाइ प्रायः रहेवानो संभवछे, माटे आत्मार्थी प्राणी मनमा विचारे के सर्व प्राणी, पोतानां कर्मयोगे शाता वा अशाता भोगवेछे. कोहनी कीर्त्ति थाय ते मारेशा कारणथी अदेखाइ करवी ? जेवां कर्म ते प्रमाणे यश वा अपयश थया करेछे, तेमां मारे शुं ? यश वा अपयश, मान वा अपमान ए कई आत्मिक वस्तु नथी हुं आत्मा तेनाथी भिन्नछु, हुं कर्मयोगे कोइ बखत राजी थयो ते वखत याचकोए कीर्त्ति गाइ, पण मनुं आजे कंइ नथी. वळी कोइ भवमां अपमान पण घणां थयां हशे पण तेमांनुं हाल कंइ नथी. जे पोतानी वस्तु नथी तेमां अहंभाव संकल्पी केम रति अरति करवी जोइए, कछे केsafe काजी कहि पाजी, कबहिक हुआ अपभ्राजी, कहि जगमें कीर्त्ति गाजी, सब पुद्गलकी बाजी. आप स्व० १
धवलशेठ श्रीश्रीपालनी अदेखाइथी अंते मरण पाम्या अने दुर्गतिमां गया. धवलशेठे अदेखाइथी शुं शुं कृत्य कर्यु नथी, दुनीयामां अदेखाड़ करनारनी पडती थया विना रहेती नथी, अदेखा
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